पृथ्वीराज चौहान दिल्ली के अंतिम हिंदू सम्राट थे जिन्हे रायपिथौरा के नाम से भी जाना जाता था। इनका विवाह राजकुमारी संयोगिता से हुआ जिसका किस्सा नीचे है और इनकी जाती के बारे में भी मतभेद है लेकिन उसकी कहानी भी नीचे है इसके साथ ही इनका इतिहास और इनके जन्म मृत्यु से लेकर सारी जानकारी इस लेख में दी गई है।
इस लेख में आपको सम्राट पृथ्वीराज चौहान के बारे में सम्पूर्ण जानकारी मिल जाएगी लेकिन आपको पोस्ट भी पूरी पढ़नी होगी वरना आपकी जानकारी अधूरी रह सकती है।
नाम | सम्राट पृथ्वीराज चौहान (Rajput Emperor PrithviRaj Chauhan) |
जन्म की तारीख और समय | 1149, गुजरात, भारत |
मृत्यु की जगह और तारीख | 1192, काबुल, अफगानिस्तान ( 43 वर्ष की उम्र में) |
माता पिता का नाम | सोमेश्वर चौहान (पिता), कमलादेवी (माता) |
वंश, जाती, धर्म | चौहान, राजपूत, हिंदू |
राजकवि और एक दिन जन्मे और मारे मित्र | चंदबरदाई (दोनो एक दिन जन्मे और एक दिन मरे) |
दूसरा नाम (उपनाम) | राय पिथौरा |
पत्नी का नाम | संयोगिता (स्वयंवर विवाह) |
राज्याभिषेक | 1169 ई. में 20 वर्ष की अल्पायु में |
राज्य गद्दी | अजमेर और दिल्ली |
Contents
संयोगिता से राजपूत सम्राट पृथ्वीराज चौहान के विवाह के बारे में कई कथाएं या किस्से प्रचलित है हम आपको सबसे प्रचलित किस्सा बताने जा रहे है।
कहा जाता है की राजकुमारी संयोगिता कन्नौज के राजा जयचंद राठौर की बेटी थी और कन्नौज के राजा जयचंद के सम्राट पृथ्वीराज चौहान के साथ अच्छे रिश्ते नही थे। लेकिन उनकी बेटी संयोगिता ने पृथ्वीराज चौहान की तस्वीर देखी थी और वह मन ही मन सम्राट से प्रेम करने लगी थी। जयचंद राठौर ने अपनी सुपुत्री संयोगिता का स्वयंवर रखवाया और सभी राजा महाराजाओं को आमंत्रित किया लेकिन उन्होंने दिल्ली के अंतिम हिंदू राजपूत सम्राट पृथ्वीराज चौहान को स्वयंवर में आमंत्रित नही किया और दुश्मनी निभाने के लिए उन्होंने सम्राट पृथ्वीराज का एक पुतला बनवाया और अपने महल के दरवाजे पर लगवा दिया। लेकिन संयोगिता ने स्वयंवर में किसी को पसंद नहीं किया और उन्होंने द्वार पर रखे पृथ्वीराज चौहान के पुतले को माला पहनाने की ठानी और इतने में ही सम्राट स्वयं वहां पहुंच गए और राजकुमारी संयोगिता ने उनको माला पहनाई और उनके साथ चली गई।
इतिहास में लिखा हुआ है की पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को 16 बार हराया था लेकिन 17 वी बार पृथ्वीराज चौहान धोखे से हार गए और मोहम्मद गोरी उन को बंदी बनाकर अफगानिस्तान ले गया। पृथ्वीराज चौहान के साथ उनके राज कवि चंदबरदाई भी गए। जिनका ये दोहा सभी ने सुना होगा।
चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण ता उपर सुलतान है मत चूके चौहान - चंदबरदाई (पृथ्वीराज चौहान के मित्र और राजकवि
इतिहासकार कहते हैं कि पृथ्वीराज चौहान शब्दभेदी बाण चलाने में निपुण थे जिसके कारण चंदबरदाई के इन शब्दों को सुनकर उनको पता चल गया कि सुल्तान किस तरफ बैठा है। और उन्होंने एक शब्दभेदी बाण चलाया और मोहम्मद गोरी को मार गिराया और उसके बाद उनके राज्य कवि चंदबरदाई ने पृथ्वीराज चौहान को और पृथ्वीराज चौहान ने चंदबरदाई को एक दूसरे के चाकू मारकर स्वर्ग चले गए।
पृथ्वीराज चौहान एक राजपूत राजा है ये सभी इतिहासकारों ने माना हैं, और वास्तविकता भी ये ही है। लेकिन गुर्जर समाज बहुत दिनो से सभी राजपूत राजाओं पर गुर्जर शब्द का ठप्पा लगा रहा है और उनका प्रमाण हमेशा गुर्जर शब्द होता है लेकिन सभी इतिहासकारों ने गुर्जरात्रा और गुर्जर प्रतिहार शब्द को जाति सूचक ना मानकर स्थान सूचक माना है।
पृथ्वीराज और चंदबरदाई के बारे में एक और बात पर चलता है कि उन दोनों को जन्म एक ही समय हुआ और मृत्यु भी एक ही समय और एक ही दिन हुई।
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