भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत भारत का सर्वोच्च न्यायालय किसी भी मामले में फैसला सुनाते हुए संवैधानिक दायरे में रहते हुए ऐसे आदेश दे सकता है जो किसी व्यक्ति को न्याय देने के लिए उचित हो। और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देश तब तक लागू रहते हैं जब तक उस विषय पर कोई कानून नहीं बन जाए।
सामान्य भाषा में यदि कोई ऐसा मामला है जिसमे कोई कानून नहीं है या जो कानून है वो पूरित नहीं है तो सुप्रीम कोर्ट कोई ऐसा आदेश दे सकता है जिससे उस मामले का फैसला और न्याय हो सके।
एसी एसटी केस में राजीनामे से हो सकता है मामले का निपटारा
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट का एक आदेश आया है कि राजीनामे या समझौते के बाद ऐसी एसटी केस में आरोपी को बरी किया जा सकता है।
अनुच्छेद 142 के उपयोग के उदाहरण
- अयोध्या में गिराए गए विवादित ढांचे के मामले को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने रायबरेली से लखनऊ के विशेष अदालत में ट्रांसफर करवाया। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 का सहारा लिया।
- भोपाल गैस त्रासदी में मरे हुए मजदूर और लोगों को मुआवजा देने का आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के तहत ही किया।
- अनुच्छेद 142 के तहत ही सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़ा को शामिल किया।
अनुच्छेद 148 | article 148 in Hindi
अनुच्छेद 213 | article 213 in Hindi