गुरु गोबिंद सिंह (Guru Gobind Singh) सिखों के दसवें और अंतिम गुरु थे उन्होंने ही साल 1699 में सिखों में खालसा पंथ की स्थापना की। गुरु गोबिंद सिंह जी ने ही सिखों से कहा की गुरु ग्रंथ साहिब को ही अपना गुरु माने। आज हम इनके पूरे जीवन के बारे में शुरू से अंत तक जानेंगे तो लेख को पूरा पढ़ें।
वाहेगुरु जी का खालसा वाहेगुरु जी की फतेह – गुरु गोबिंद सिंह
गुरु गोविंद सिंह जयंती को हर वर्ष सिख धर्म के लोग बड़ी धूम-धाम से मनाते हैं इस दिन को प्रकाश पर्व के नाम से जाना जाता है। इस साल 2022 में प्रकाश पर्व 9 जनवरी और 29 दिसंबर 2022 को दो दिन मनाया जायेगा।
गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 को पटना, बिहार, भारत में हुआ वे एक महान योद्धा, चिन्तक, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक नेता थे। उनके प्रमुख उपनामों में कलगीधर, दशमेश, बाजांवाले है।
साल 1670 में गुरु गोबिंद सिंह जी का परिवार पटना छोड़ पंजाब आ गया और फिर दो साल बाद ही 1672 में चक्क नानकी नामक शिवालिक पहाड़ियों के बीच रहने लगे यहीं पर उन्होंने फारसी और संस्कृत की शिक्षा ली और एक योद्धा बन गए।
पूरा नाम (Full Name) | गुरु गोबिंद सिंह (Guru Gobind Singh) |
पिताजी का नाम (Father Name) | गुरु तेग बहादुर |
माता का नाम (Mother Name) | माता गूजरी |
पत्नियों का नाम | माता जीतो, माता सुंदरी, माता साहिब देवां |
बच्चे (Children’s) | अजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह, फतेह सिंह |
जाति और धर्म (Caste & Religion) | खत्री सिख |
प्रसिद्धि | सिखों के दसवें गुरु, खालसा पंथ के संस्थापक |
जन्म की तिथि और स्थान (Date Of Birth & Place) | 22 दिसंबर 1666 को पटना, बिहार, भारत |
मृत्यु की तिथि और स्थान (Date Of Death & Place) | 7 अक्टूबर 1708 को नांदेड़, महाराष्ट्र, भारत |
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जब कश्मीरी पंडितो का जबरन धर्म परिवर्तन किया जा रहा था तब वे अपनी फरियाद लेकर गुरु तेग बहादुर के पास आए। और कहा की हमारे सामने औरंगजेब ने शर्त रखी है की कोई ऐसा महापुरुष जो धर्म परिवर्तन नही कर सकता अगर वो अपना बलिदान दे तो तुम्हारा धर्म परिवर्तन नही करवाया जायेगा।
इस समय गुरु गोबिंद सिंह सिर्फ नौ साल के थे उन्होंने अपने पिताजी से कहा की आपसे बड़ा महापुरुष कौन हो सकता है। इतना सुनते ही गुरु तेग बहादुर चल दिए कश्मीरी पंडितो के साथ और धर्म परिवर्तन ना करने के कारण 11 नवम्बर 1675 को औरंगजेब ने दिल्ली के चांदनी चौक पर सबके सामने गुरु तेग बहादुर का सिर कटवा दिया था तत्पश्चात वैशाखी के दिन 29 मार्च 1676 गुरू गोबिंद सिंह सिखों के दसवें गुरु बने।
गुरु गोबिंद सिंह की तीन पत्नियां थी उनका पहला विवाह मात्र 10 साल की उम्र में माता जीतो के साथ हुआ यह विवाह 21 जून, 1677 को आनन्दपुर से 10 किलोमीटर दूर बसंतगढ़ में किया गया।
माता जीतो और गुरु गोबिंद सिंह जी के तीन पुत्र हुए जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फ़तेह सिंह।
उनका दूसरा विवाह 17 साल की उम्र में माता सुंदरी से हुआ 4 अप्रैल 1684 को ये विवाह आनंदपुर में हुआ जिनसे उनको अजीत सिंह नाम का एक पुत्र हुआ।
15 अप्रैल 1700 को 33 वर्ष की आयु में उन्होंने माता साहिब देवन से विवाह किया और उनसे उनको कोई संतान नहीं हुई।
नादौन का युद्ध | भंगानी का युद्ध |
आनंदपुर की लड़ाई (1700) | गुलेर की लड़ाई (1696) |
निर्मोहगढ़ की लड़ाई (1702) | बसोली का युद्ध |
चमकौर का प्रथम युद्ध | आनंदपुर की पहली लड़ाई (1704) |
आनंदपुर का दूसरा युद्ध | सरसा का युद्ध |
चमकौर का दूसरा युद्ध (1704) | मुक्तसर की लड़ाई |
ऐसा कहा जाता है की गुरु गोबिंद सिंह जी ने मुसलमानों के बारे में एक बार कहा था की वे कुरान की सौ बार कसम खाए तो भी उनपर विश्वास नही करना चाहिए।
अपने हाथ को कोहनी तक तेल में डालें और फिर उसे तिल के बोरे में डालने जितने तिल आपके हाथ पर लगे है उतनी बार भी एक मुसलमान सौगंध खाए तो भी उसपर विश्वास मत करना।
वजीत खान गुरु जी को मारना चाहता था और वो अपनी मंशा में कामयाब भी हुआ, उसने 07 अक्टूबर 1708 में गुरू गोबिन्द सिंह जी को नांदेड साहिब में मारने की कोशिश की और गुरुजी दिव्य ज्योति में लीन हो गए।
वजीत खान से युद्ध करते हुए गुरु गोबिंद सिंह जी को सीने के ऊपर गहरी चोट लगी थी जिसके कारण मात्र 42 वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई थी। अपने अंतिम समय में गुरु गोविंद सिंह ने सिखों को गुरु ग्रंथ साहिब को अपना गुरु मानने के लिए कहा और खुद भी अपना माथा टेका।
गुरु गोविंद सिंह जी के चार बच्चे थे जो उनके जीवनकाल के दौरान ही मारे गए जिन्हें चार साहिबजादे नाम से पुकारा जाता है। इनके चार बेटों का नाम अजीत सिंह, जोरावर सिंह, जुझार सिंह फतेह सिंह था।
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