भारतीय संविधान की उद्देशिका

  • भारतीय संविधान की उद्देशिका का प्रस्ताव नेहरू ने संविधान सभा के समक्ष पेश किया। लेकिन भारतीय संविधान की ये प्रस्तावना ऑस्ट्रेलियाई संविधान की प्रस्तावना से प्रभावित मानी जाती है।
  • प्रस्तावना :- प्रस्तावना या उद्देशिका किसी भी संविधान का सार मानी जाती है आपको प्रस्तावना से ही पता चल जायेगा की संविधान के द्वारा सरकार को क्या स्थापित करना है।

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हम भारत के लोग

  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना की शुरुआत ' हम भारत के लोग ' शब्द से होती है जिसका अर्थ है की इस संविधान को हमने बनाया है और ये हमारे ऊपर ही लागू और और इसे हम ही चलाएंगे।
  • केहर सिंह बनाम भारत संघ वाले मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था की संविधान को सर्वोपरि है जिस पर कोई प्रश्न नहीं उठाया जा सकता है।

संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न

  • प्रभुत्व संपन्न:- संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न का अर्थ है कि भारत आंतरिक और बाहरी मामलों में अपने निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है को भी बाहरी शक्ति उसे निर्णय लेने के लिए मजबूर नहीं कर सकती।

समाजवादी

  • समाजवादी:- भारत में लोकतांत्रिक समाजवाद को अपनाया गया है जिसमे मिश्रित अर्थव्यवस्था पर भरोसा किया जाता है और सरकारी के साथ निजी क्षेत्र भी साथ साथ चलते है वही असली समाजवाद है जिसका लक्ष्य देश से गरीबी, अज्ञानता को मिटाने के से रोग मुक्त देश बनाना होता है।
  • मूल संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी शब्द नही था लेकिन साल 1976 में 42वें संविधान संशोधन के द्वारा इसे प्रस्तावना में जोड़ा गया था।

पंथनिरपेक्ष या धर्मनिरपेक्ष

  • पंथनिरपेक्ष या धर्मनिरपेक्ष:- धर्मनिरपेक्षता का अर्थ होता है कि सभी धर्मों को राज्य से समान रूप से संरक्षण सुरक्षा और समर्थन पाने का अधिकार होता है।
  • भारतीय संविधान की मूल प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष शब्द भी नहीं था जिसे बाद में 42 व संशोधन 1976 में पंथनिरपेक्ष नाम से जोड़ा गया।

लोकतांत्रिक

  • लोकतंत्र :- राज्य में एक ऐसी सरकार होगी जो जनता द्वारा चुनी जायेगी और वो जनता के ही सर्वांगीण विकास के लिए कार्य करेगी।
  • भारत में लोकतंत्र है जिसके अनुसार जनता ही अपनी सरकार चुनती है सभी नेता प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से जनता के द्वारा चुने जाते हैं।

गणराज्य या गणतंत्र

  • गणतंत्र:- गणतंत्र का अर्थ है कि देश या राज्य का मुखिया लोगों द्वारा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से चुना जाए ना कि वह वंशानुगत हो।
  • भारत का सर्वोच्च मुखिया राष्ट्रपति होता है जिसे अप्रत्यक्ष रूप से जनता चुनती है।

सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय

  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना में तीन प्रकार की न्याय की चर्चा की गई है जो सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय है इन सभी प्रकार के न्याय की व्यवस्था नीति निर्देशक तत्व और मौलिक अधिकारों के माध्यम से की गई है।
  • सामाजिक न्याय:- भारतीय संविधान में सामाजिक न्याय की व्यवस्था की गई है जिसका अर्थ है राज्य की नजर में सभी व्यक्ति समान हैं चाहे वह किसी भी जाति, धर्म ,लिंग या क्षेत्र का हो।
  • आर्थिक न्याय:- सभी लोगों को कमाने के लिए समान अवसर दिए गए हैं इसे ही आर्थिक न्याय कहा जाता है।
  • राजनीतिक न्याय:- सभी लोगों को वोट डालने का अधिकार है और सभी लोग समान रूप से चुनाव लड़ सकते हैं हालांकि पिछड़ों के लिए अलग से सीटों का निर्धारण किया गया है।

विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता

  • विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता :-सभी व्यक्ति को किसी भी विषय पर अपने विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता होगी और अभिव्यक्ति की आजादी होगी लेकिन उसे किसी दूसरे का अधिकारों का हनन नहीं होना चाहिए।
  • विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता :- राज्य में सभी व्यक्तियों को अपना धर्म मानने और उसके प्रचार-प्रसार की स्वतंत्रता होगी और वह किसी भी प्रकार से अपने देवी देवता की उपासना कर सकते हैं।

प्रतिष्ठा और अवसर की समता

  • समता:- किसी भी व्यक्ति को राज्य की तरफ से कोई विशेषाधिकार नहीं दिया जाएगा सभी व्यक्ति समान होंगे किसी के साथ भी राज्य भेदभाव नहीं करेगा।

व्यक्ति की गरिमा

  • किसी भी व्यक्ति को राज्य में रहते हुए भेदभाव और छुआछूत के साथ उसकी गरिमा को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता चाहे वो कोई भी हो और वह अपना जीवन गरिमा के साथ जी सकता है लेकिन इससे दूसरों के अधिकारों का हनन का अधिकार उसे नहीं मिलता।

एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता

  • बंधुता: - बंधुता का अर्थ होता है भाईचारा सभी व्यक्तियों में ऐसा भाईचारा हो जिससे राष्ट्र की एकता बनी रहे और उसकी अखंडता सुनिश्चित बनी रहे।

अंगीकृत, अधिनियमित आत्मर्पित

  • अंगीकृत:- अंगीकृत का शाब्दिक अर्थ होता है लिखना इसका अर्थ है की इस संविधान को हमने ही लिखा था।
  • अधिनियमित:- और यह संविधान हमारे लिए ही बनाया गया है यह अधिनियमित का अर्थ है।
  • आत्मर्पित:- आत्मर्पित का अर्थ है कि संविधान को हमें अपने ऊपर ही लागू करना है।
  • साथ ही प्रस्तावना में संविधान बनकर पूर्ण होने की तिथि 26 नवंबर 1950 के साथ मार्गशीष शुक्ल सप्तमी संवत २००६ विक्रमी का भी जिक्र किया गया है।

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