हरित क्रांति | परिचय, जनक, शुरुआत, नुकसान, विशेषताएं, निबंध (green Revolution In Hindi PDF Download)
हरित क्रांति का अर्थ (परिचय)
हरित क्रांति (Green Revolution) का अर्थ सभी देशों को खाद्यान्न फसलों में आत्मनिर्भर बनाना इसका सबसे ज्यादा प्रभाव विकासशील देशों पर पड़ा (भारत और मेक्सिको) यहां आप गेंहू और चावल के उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई।
जनक और शुरुआत
हरित क्रांति का जनक (Father of Green Revolution) नॉर्मन बोरलॉग को माना जाता है, जिन्होंने 1940-60 इसकी शुरुआत की।
साल 1970 में नॉर्मन बोरलॉग को उच्च उपज देने वाली किस्मों को विकसित करने के लिए नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया।
भारत में इसकी शुरुआत का एम.एस. स्वामीनाथन ने की।
क्रांति का नाम
हरित क्रांति (green Revolution)
जनक
नॉर्मन बोरलॉग (Norman Borlaug)
शुरुआत
1960 के दशक में
प्रमुख फसलें
गेंहू और चावल
प्रभावित देश
मैक्सिको और भारत
भारत में प्रमुख योजना
कृषोन्नति योजना
भारत में जनक
एम.एस. स्वामीनाथन
हरित क्रांति के प्रणेता
बाबू जगजीवन राम
हरित क्रांति के उद्देश्य
भारत में हरित क्रांति की शुरुआत पंचवर्षीय योजनाओं से हुई जिसमें भुखमरी की समस्याओं को दूर करने के लिए हरित क्रांति की शुरुआत की गई।
भारत में समग्र ग्रामीण कृषि का विकास और कच्चे माल की पूर्ति भारत से ही हो सके इसके लिए इसकी शुरुआत की गई।
जब कच्चा माल भारत में मिलेगा तो उद्योग लगेंगे और बेरोजगारी की समस्या भी हल हो गई।
वैज्ञानिक अध्ययन के बाद कौनसी मिट्टी और जलवायु कौनसी फसल के लिए उपयोगी है इसका अंदाजा आसानी से लगाया जाने लगा।
गैर औद्योगिक राष्ट्रों में प्रौद्योगिकी का प्रसार हुआ और एक साल में कई फसलें पैदा की जाने लगी।
1950 के दशक में अमेरिका जैसे देशों में प्रौद्योगिकी के कृषि में आने से ना केवल वहां के खाद्य फसलों में वृद्धि हुई बल्कि वो निर्यात भी करने लगे थे तो भारत ने भी उनकी होड़ लगाई।
भारत में हरित क्रांति
भारत में हरित क्रांति की शुरुआत 1966-67 में हुई, भारत में इसके जनक एम. एस. स्वामीनाथन थे। भारत के तत्कालीन कृषि एवं खाद्य मन्त्री बाबू जगजीवन राम को हरित क्रांति का प्रणेता माना जाता है इन्होंने स्वामीनाथन कमेटी की सिफ़ारिश पर हरित क्रांति का संचालन किया।
पृष्ठभूमि
भारत में हरित क्रांति का प्रमुख कारण थे अकाल जैसे बंगाल के अकाल के कारण लगभग 40 लाख लोग मारे गए।
भारत खाद्य संकट से पीड़ित देशों की श्रेणी में था इसलिए शुरुआती पंचवर्षीय योजनाओं में सिर्फ कृषि पर ज्यादा ध्यान दिया गया।
जनसंख्या विस्फोट के कारण ज्यादा खाद्य पदार्थ भारत की जनता की चाहिए थे जिसकी पूर्ति केवल हरित क्रांति से संभव थी।
हरित क्रांति के समय कृषि में तकनीकि एवं संस्थागत सुधार
रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग
हरित क्रांति के कारण भारत में रासायनिक खाद का प्रयोग शुरू कर दिया और इसकी खपत बढ़ने लगी।
इकाई / साल
1960-1961
2008-2009
प्रति हेक्टेअर
2 किलोग्राम
128.6 किलोग्राम
संपूर्ण भारत में
2.92 लाख टन
249.09 लाख टन
उन्नतशील बीजों के प्रयोग
नए नए बीजों का प्रयोग किया जाने लगा और तरह तरह की बीजो की किस्मों की खोज हुई। लेकिन सबसे ज्यादा सफलता हमको गेंहू और चावल में मिली।
सिंचाई सुविधाओं का विकास
हरित क्रांति के बाद देश में सिंचाई सुविधाओं का विस्तार देखें
इकाई / साल
1951
2008-09
सिंचाई क्षमता
223 लाख हेक्टेअर
1,073 लाख हेक्टेअर
कुल संचित क्षेत्र
210 लाख हेक्टेअर
673 लाख हेक्टेअर
कीटनाशक का प्रयोग
नवीनतम कृषि विधियों का काम किया जाने लगा और खरपतवार के लिए दवाइयों का प्रयोग और टिड्डी जो फसलों को बर्बाद कर देती थी उनके लिए कीटनाशकों का प्रयोग किया जाने लगा और फसल में वृद्धि हुई।
बहुफ़सली कार्यक्रम
भारत में परती भूमि छोड़ने की परंपरा शुरुआत से रही है जिससे देश की उत्पादन क्षमता में कमी होती है। हरित क्रांति के समय एक खेत से एक साल में कई फसल लेने का कार्यक्रम चलाया गया और आज भी उन्नत किसान बहुफ़सली कार्यक्रम से फसल बोते है।
आधुनिक कृषि यंत्रों का प्रयोग
पहले को काम बैल और इंसान खुद किया करते थे बाद में इनकी जगह ट्रैक्टर, थ्रेसर, हार्वेस्टर ने ले ली और फसल करने में कम मेहनत लगने लगी और काम भी साफ होता था।
कृषि सेवा केन्द्रों की स्थापना
भारत सरकार ने कृषि सेवा केन्द्र स्थापित करने की योजना लागू की जिसके तहत राष्ट्रीयकृत बैंकों से सहायता दिलाई जाती है। भारत में अब 1500 के आसपास कृषि सेवा केन्द्र बन चुके है।
विभिन्न निगमों की स्थापना
17 राज्यों में कृषि उद्योग निगम की स्थापना की गई।
400 कृषि फार्मो की स्थापना की गई।
1963 में राष्ट्रीय बीज निगम की स्थापना की गई है।
1963 में राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम की स्थापना की गई।
विश्व बैंक की सहायता से राष्ट्रीय बीज परियोजना शुरुआत की गई।
राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक की स्थापना कृषि वित्त के कार्य हेतु की गई है।
मृदा परीक्षण और संरक्षण
उबड़ खाबड़ जमीन को समतल करना और रासायनिक खाद और उर्वरकों की सलाह देना मिट्टी का परिक्षण करके फसलों के बारे में बताना और किसान को सलाह देना।
कृषि शिक्षा एवं अनुसन्धान
कृषि विश्वविद्यालय, पन्तनगर
केन्द्रीय विश्वविद्यालय, इम्फाल
39 राज्य कृषि विश्वविद्यालय स्थापित किए गए
53 केन्द्रीय संस्थान
32 राष्ट्रीय अनुसंधान केन्द्र
12 परियोजना निदाशाल
64 अखिल भारतीय समन्वय अनुसन्धान
भारत में हरित क्रांति के चरण
प्रथम चरण
1968-1988
द्वितीय चरण
1990
कृषोन्नति योजना (Green Revolution Krishonnati Yojana)
हरित क्रांति-कृषोन्नति योजना भारत में साल 2005 में लाई गई। इस योजना के तहत भारत सरकार किसानों की आय बढ़ाने और कृषि को वैज्ञानिक तरीके से बढ़ाने का प्रयास किया।
अंब्रेला योजना के 11 मिशन
एकीकृत बागवानी विकास मिशन
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन
राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन
कृषि विस्तार का प्रस्तुतिकरण
बीज और पौधरोपण सामग्री पर उप मिशन
कृषि मशीनीकरण पर उप-मिशन
पौध संरक्षण एवं पौध संगरोधक से संबंधित उप मिशन
कृषि जनगणना, अर्थशास्त्र और सांख्यिकी पर एकीकृत योजना
कृषि सहयोग पर एकीकृत योजना
कृषि विपणन पर एकीकृत योजना
कृषि में राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना
सदाबहार हरित क्रांति
भारत में हरित क्रांति के जनक डॉ एम.एस. स्वामीनाथन ने सदाबहार हरित क्रांति की शुरुआत की।
सदाबहार क्रांति में प्रौद्योगिकी विकास और प्रसार में पारिस्थितिक सिद्धांतों का एकीकरण पर बल दिया गया।
भारत में जनसंख्या विस्फोट का काल चल रहा था जिसमे हमारे पास उत्पादन बढ़ाने के अलावा और कोई विकल्प न था।
हरित क्रांति के प्रभाव
हरित क्रांति की शुरुआत इसके सकारात्मक प्रभाव को देखते हुए की गई लेकिन फिर भी इसके कुछ सकारात्मक और कुछ नकारात्मक प्रभाव पड़े जिन्हें आप निम्नलिखित देख सकते हैं।
सकारात्मक प्रभाव
प्रति हैक्टेयर उत्पादन में वृद्धि: हरित क्रांति के कुछ ही समय बाद भारत विश्व का सबसे बड़ा कृषि उत्पादक देश बन गया। खासकर गेहूं और चावल में भारत काफी अग्रणी के रूप में उभरा।
आयत में कमी: जब भारत में ही अच्छा उत्पादन होने लगा तो भारत ने विदेशी आयत में कमी ला दी और अपने देश का माल खाने लगे।
किसानों की आय में बढ़ोतरी: इससे किसानों की आय में भी काफी बढ़ोतरी हुई और इन्होंने पूजीवादी कृषि करना प्रारंभ कर दिया।
प्रौद्योगिकी विकास: किसान थ्रेसर, कटर, ट्रैक्टर की मदद से खेती करने लगे।
रोजगार में बढ़ोतरी: जब एक साल में ही कई फसलें बोई जाने लगी तो किसानों को ज्यादा मजदूरों की जरूरत पड़ने लगी और गांव में ही रोजगार के अवसर निकल कर आए।
नकारात्मक प्रभाव
गैर खाद्य फसलों पर इतना प्रभाव नहीं पड़ा: मक्का, गेहूं, ज्वार, बाजरा आदि तो इसमें शामिल थे लेकिन कपास, गन्ना और तिलहन फसले हरित क्रांति में शामिल नहीं हो पाई।
सभी किसानों द्वारा रासायनिक खाद का अत्यधिक प्रयोग किया जाने लगा।
पानी की खपत बढ़ गई और जलस्तर नीचे जाने लगा है।
निष्कर्ष
हरित क्रांति का सबसे ज्यादा प्रभाव भारत जैसे विकासशील देशों में पड़ा। इनमे मुख्य खाद्यान्न फसल गेंहू और चावल का उत्पादन बढ़ा। लेकिन उसकी गुणवत्ता में पहले के मुकाबले कमी आ गई।
कीटनाशकों का उपयोग किया जाने लगा उर उर्वरकों के प्रयोग से प्रति हैक्टेयर उत्पादन तो बढ़ा लेकिन लोगो में बीमारियां जो इनके प्रभाव से होती है आने लगी है।
किसानों को जागरूक किया गया उनकी फसलों का बीमा और मिट्टी निरक्षण और संरक्षण के बारे में उनको समझाया गया। कम भूमि में ज्यादा फसल लाभ लेने के लिए बहुफसलीय योजना लागू की गई।