जैसा की आप सभी को पता है हिंदी सिनेमा यानी बॉलीवुड में बॉयकॉट संस्कृति बहुत चर्चित है। लेकिन ऐसा क्या हुआ है की लोग हिंदी सिनेमा बॉलीवुड को छोड़कर दक्षिणी भारतीय फिल्में जो की तमिल, तेलुगु और मलयालम की हिंदी अनुवादित होती हैं उनको देखना पसंद कर रहे हैं इस लेख में हम इसके 10 कारण बताएंगे जिससे आपको समझ आएगा की लोग क्यों नही देख रहे बॉलीवुड फिल्में तो लेख को पूरा जरूर पढ़ें।
फिल्में बनाने में लगने वाला समय
आपने सुना ही होगा साउथ इंडियन फिल्मों की बनने में 4 से लेकर 8 साल का समय लगता है वहीं बॉलीवुड अपनी फिल्में 40 दिन में बना देता है कैरेक्टर पर तो बॉलीवुड में एक्टर बिलकुल भी काम नही करते आपने सम्राट प्रथविराज में देखा होगा की अक्षय कुमार ने मूंछे भी नकली लगाई हुई थी।
हमारी फिल्में मत देखो VS दर्शक भगवान हैं
बॉलीवुड के अभिनेता और अभिनेत्री थोड़े ज्यादा घमंडी लगते है वो अपने दर्शको को यहां तक कह देते है की आपको फिल्म नही देखनी तो मत देखो लेकिन साउथ इंडियन स्टार अपने दर्शक का पूरा ख्याल रखते है।
हर बार कुछ नया ट्राई करना
बॉलीवुड में हर बार कुछ नया ट्राई किया जाता है जबकि बॉलीवुड में नई पुरानी बनी हुई परिपाटी पर फिल्में बनाई जा रही है। आपके बाहुबली फिल्म में देखा होगा एक अलग भाषा का निर्माण किया गया जबकि बॉलीवुड अलग करने से कतराता है।
एक ही फिल्म में 2 से 3 बड़े एक्टर साथ में काम करते है
साउथ इंडियन फिल्मों में एक साथ दो से तीन स्टार आसानी से काम कर लेते हैं लेकिन बॉलीवुड में अगर मल्टीस्टारर फिल्म बन रही है तो यह चर्चा तेज हो जाती है की किसको स्क्रीन पर ज्यादा टाइम मिला।
फिल्मों का कम बजट कमाई ज्यादा
साउथ इंडियन सिनेमा यानी टॉलीवुड में फिल्मों का बजट काफी सही रहता है जो की फिल्म को बनाने का वास्तविक खर्च होता है जिससे उनकी फिल्में इतनी ज्यादा फ्लॉप नही होती उसका उलट बॉलीवुड में एक्टर ही ₹80 करोड़ तक चार्ज कर लेते है जिसके बाद फिल्म का बजट काफी ज्यादा हो जाता है और फिल्म उतनी कमाई नहीं कर पाती है और फ्लॉप हो जाती है।
अच्छे डायरेक्टर को द्वारा फिल्म निर्देशित करना
बॉलीवुड में फिल्में अच्छी डायरेक्टर द्वारा निर्देशित की जाती हैं जैसे आपने एसएस राजामौली का नाम सुना होगा। वहीं बॉलीवुड की फिल्मों में बड़े स्टार जैसे आमिर खान और अक्षय कुमार खुद ही डायरेक्ट कर लेते हैं इसका भी नेगेटिव असर सिनेमा पर पड़ रहा है।
नेपोटिज्म का है बोलबाला
बॉलीवुड में जैसा कि आपको पता है नेपोटिज्म यानी परिवारवाद बहुत ज्यादा है और उनको बिना किसी मेहनत की फिल्में मिल जाती हैं भले ही उन्हें एक्टिंग का ए भी ना आता हो। नेपोटिज्म साउथ इंडियन फिल्मों में भी है लेकिन वहां टैलेंट को देखकर काम दिया जाता है।
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लेखक लिखते है कहानियां
टॉलीवुड में अच्छे राइटर कहानियां लिखते हैं और एक्टर का कार्य उन पर परफॉर्म करना होता है जबकि बॉलीवुड में एक्टर अपने अनुसार डायलॉग्स चेंज कर सकते हैं। इससे कहानी की मूल भावना नष्ट हो जाती है।
भारतीय संस्कृति को बढ़ावा
साउथ इंडियन सिनेमा भारतीय हिंदू संस्कृति को बहुत ज्यादा बढ़ावा देते हैं लेकिन वही बॉलीवुड की बात करें तो वह भारतीय संस्कृति को विलेन की तरह दिखाते हैं। जिससे एक तरीके का धार्मिक गैप हिंदी सिनेमा और दर्शकों के बीच बन गया है।
रीमेक पर रीमेक
बॉलीवुड में बड़े से बड़े स्टार रीमेक फिल्में बनाने पर काम कर रहा है और उनमें से ज्यादातर रीमेक की गई फिल्में टॉलीवुड की ही होती हैं। वही साउथ इंडियन सिनेमा बिल्कुल नई-नई चीजें लोगों के सामने लेकर आते हैं जिससे लोगों की रूच उनकी फिल्मों की तरफ बढ़ रही है।
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