ऑपरेशन पोलो (Operation Polo) या ऑपरेशन कैटरपिलर भारत की आज़ादी के बाद हिंदू बहुल आबादी वाले मुस्लिम निज़ाम शासित रियासत हैदराबाद में भारत में विलय के लिए 13 सितंबर 1948 से 18 सितंबर 1948 तक पूरा किया गया था।
यह सरदार बल्लभ भाई पटेल के कहने पर भारतीय सेना द्वारा किया गया खुफिया मिशन था जिसे पुलिस कार्यवाही बताकर दूसरे देशों को इसमें टांग अड़ाने से रोका गया था।
आइए आज हम जानते है हैदराबाद रियासत के भारत में मिलने की कहानी शुरू से लेकर अंत तक।
ऑपरेशन पोलो जानकारी
ऑपरेशन पोलो | 13 सितंबर 1948 – 18 सितंबर 1948 |
विलय रियासत | हैदराबाद |
मुख्य नेता | निज़ाम मीर उस्मान अली खान (हैदराबाद), सरदार बल्लभ भाई पटेल (डोमिनियन ऑफ इंडिया) |
भारतीय की तरफ से ऑपरेशन हेड | मेजर जनरल जयन्त नाथ चौधुरी |
पृष्ठभूमि
1947 में भारत की आजादी के बाद भारत में एक रियासत थी जिसका नाम था हैदराबाद जैसा की आप सभी ने सुना होगा आजादी के बाद सभी रियासतों को स्वतंत्र रहने का अधिकार था और हैदराबाद रियासत के निजाम मीर उस्मान अली खान ने भारत और पाकिस्तान दोनों से अलग देश बनाकर रहने का फैसला किया।
निजाम उस वक्त का दुनिया का सबसे अमीर व्यक्ति था जिसके कारण वो अपनी शान शौकत बचाना चाहता था और अपने लिए अलग देश में रहना चाहता था। उसने मुस्लिम बहुल अपनी एक सेना भी बना रखी थी जिसे रजाकर सेना कहा जाता था।
इस्लामिक राष्ट्र की चाहत
उन्हें लोकतंत्र पर विश्वास नहीं था वे एक इस्लामिक राष्ट्र चाहते थे। इसके लिए उन्होंने कॉमनवेल्थ के अधीन अपना एक देश बनाने की मांग भी तत्कालीन भारतीय गवर्नर लॉर्ड माउंटबेटन से की लेकिन उन्होंने उसकी मांग नहीं मानी।
भारत सरकार ने हैदराबाद के निजाम से आग्रह किया की आप अपना राज्य चला सकते है लेकिन भारत सरकार आपके विदेश नीति संबंधी काम काज देखेगी और आपको पाकिस्तान से कोई संबंध नहीं रखना है।
हिंदुओ पर अत्याचार
इस्लामिक राष्ट्र की चाहत ने इन लोगो को अंधा कर दिया था जिसके बाद इन्होंने कम्युनिस्ट और हिंदुओ को निशाना बनाना शुरू कर दिया हजारों की संख्या में हिंदुओ को मारा गया और महिलाओं का बलात्कार किया गया।
अमेरिका से मदद की मांग
हैदराबाद का निजाम यहीं नहीं रुका उसने अमेरिका के राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन से भी मदद मांगी लेकिन वहां से भी कोई मदद ना मिलने के चलते उसने पाकिस्तान से हथियार मंगाने शुरू कर दिए।
ऑपरेशन पोलो योजना
निज़ाम ने पाकिस्तान के साथ मदद जारी रखी और अपनी सेना भी बना ली और भारतीय करेंसी को अपने राज्य में चलाने से मना कर दिया। और तब जाकर सरदार बल्लभ भाई पटेल का धैर्य टूटा और उन्होंने रातोरात हैदराबाद पर आक्रमण करने की योजना बनाई और ऑपरेशन पोलो हुआ।
भारतीय सेना के सामने रजाकार आर्मी केवल 5 दिन टिक पाई जिसके बाद उन्होंने सिकंदराबाद में आत्मसमर्पण कर दिया था। जिसके बाद ज्यादातर नेताओ को पाकिस्तान भेज दिया गया था बाकी को भारत में शरण दी गई थी।
नेहरू बातचीत से मामला सुलझाना चाहते थे, पर सरदार पटेल के पास बात करने के लिए धैर्य नहीं था।
ए. जी. नूरानी, लेखक
परिणाम
निजाम की हार हुई और हैदराबाद रियासत का भारत में विलय हुआ। कहा जाता है की इसमें विजय के बाद मुस्लिमो का कत्लेआम किया गया था लेकिन इसका कोई तथ्य अभी तक सामने नहीं आया है।
रज़ाकार प्रमुख सैयद क़ासिम रिज़वी इनके सबसे बड़े कारण माने जा सकते है क्योंकि उनके सर पर इस्लामिक राष्ट्र का भूत सवार था जो भारतीय सेना ने एक झटके में उतार दिया।
प्रमुख बिंदु
- 35000 भारतीय सैनिक VS 22000 हैदराबादी रजाकार
- सुंदरलाल समिति के अनुसार 30 से 40 हजार लोगो की इसमें जान गई थी।
- पाकिस्तान सैन्य कार्रवाई को लेकर संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं में खूब छटपटाया लेकिन उसकी किसी ने नहीं सुनी।
- निजाम ने मुहम्मद अली जिन्ना को भी पत्र भेजा था उन्हें आशा थी की जिन्ना इनकी मदद जरूर करेंगे लेकिन उसकी तरफ से भी कोई जवाब नही आया।
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