परिसीमन आयोग फिलहाल चर्चा में क्यों
हाल ही में लोकसभा सीटों के परिसीमन पर सवाल उठाते हुए केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री ने कहा कि दक्षिणी राज्यों को उनकी जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने और विकास पर ध्यान केंद्रित करने के लिए दंडित नहीं किया जा सकता है।
केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री ने ऐसा इसलिए कहा की लोकसभा की सीटें जनसंख्या के आधार पर बनाई जा रही है जिससे यूपी के पास सबसे ज्यादा सीट आ जायेगी और दक्षिणी राज्य जिन्होंने अपनी जनसंख्या कम कर ली उनके पास कम लोकसभा सीटें होंगी।
परिसीमन क्या है?
परिसीमन से तात्पर्य आबादी का प्रतिनिधित्व करने हेतु किसी राज्य में विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिये निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं का निर्धारण करना है और इनका निर्धारण भी वहां की जनसंख्या को ध्यान में रखकर किया जाता है।
चुनाव आयोग के अनुसार, परिसीमन एक देश या एक विधायी निकाय वाले प्रांत में क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को तय करने का कार्य या प्रक्रिया है।
परिसीमन आयोग के बारे में प्रमुख बातें
- पहला परिसीमन 1950-51 में चुनाव आयोग की मदद से राष्ट्रपति द्वारा किया गया था।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 82 के तहत, संसद प्रत्येक जनगणना के बाद एक परिसीमन अधिनियम बनाती है।
- अनुच्छेद 170 के तहत राज्यों को प्रत्येक जनगणना के बाद परिसीमन अधिनियम के अनुसार क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है।
- इसके बाद परिसीमन करने के लिए परिसीमन आयोग के रूप में जाना जाने वाला एक स्वतंत्र उच्चाधिकार प्राप्त पैनल गठित किया जाता है वही चुनावों के लिए क्षेत्रों का परिसीमन करता है।
- संसद ने इस उद्देश्य के लिए 1952, 1962, 1972 और 2002 में परिसीमन आयोग अधिनियमों को अधिनियमित किया है।
- 1981 और 1991 की जनगणना के बाद कोई परिसीमन अधिनियम नहीं बनाया गया।
- निर्वाचन क्षेत्रों का वर्तमान परिसीमन परिसीमन आयोग अधिनियम, 2002 के प्रावधानों के तहत 2001 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर किया गया है।
- अगला परिसीमन आयोग 2026 के बाद गठित किया जायेगा।
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परिसीमन आयोग की क्या जरूरत है?
जनसंख्या के समान वर्गो को समान प्रतिनिधित्व देने के लिए: लेकिन ऐसा करने से वर्तमान में दक्षिण के विकशित राज्यों के साथ नाइंसाफी हो जाती है क्योंकि वहां के राज्यों ने पहले ही अपनी जनसंख्या पर कंट्रोल पा लिया है।
भौगोलिक क्षेत्र की दृष्टि से भी सही विभाजन होना ताकि एक राजनीतिक दल को लाभ ना मिल सके।
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