साल 1927 में डॉ भीमराव अंबेडकर ने महाड़ सत्याग्रह की शुरुआत की। जिसका उद्देश्य हिंदू धर्म में दलित लोगों को मंदिर में प्रवेश कराना और वहां पर सभी के साथ महाड़ तालाब में से पानी पीने का अधिकार दिलाना था।
इस आंदोलन से पहले ही कलेक्ट्रेट में सभी लोगों को पानी भरने का अधिकार और मंदिर में जाने का अधिकार दे दिया था लेकिन वहां के ब्राह्मण कलेक्ट्रेट के आदेश के खिलाफ स्टे आर्डर ले आए थे।
यहां की ऊंची जातियां चाहती थी कि सत्याग्रह ना हो और उन्होंने इसके लिए सत्याग्रह के लिए सार्वजनिक जगह भी उपलब्ध नहीं होने दी। लेकिन एक फत्ते खान नाम के व्यक्ति ने उनको अपनी निजी जमीन पर सत्याग्रह करने के लिए कह दिया।
इस सत्याग्रह में शामिल होने वाले लोगों को एक शपथ लेनी पड़ती थी जिसमें “1. मैं जन्म से स्थापित चुतुर्वर्ण सिस्टम में विश्वास नहीं करता 2. जाती और वर्ण में विश्वास नहीं करता 3. मैं मानता हूं की अस्पृश्यता हिंदू धर्म के लिए एक अभिशाप है और मैं इसे मिटाने की पूरी कोशिश करूंगा।
बहुत सारे लोग डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को इस प्रोटेस्ट से रोकना चाहते थे इसीलिए उन्होंने बस से सफर ना करके “पद्मावती” नाम की एक वोट से इस जगह आए थे क्योंकि उन्हें विश्वास था कि बस मालिक उनका बहिष्कार कर सकते हैं।
मनुस्मृति को जलाने के लिए पहले से ही वेदी तैयार कर दी गई थी और उसपर तीन तरफ बैनर लगे हुए थे जिनपर लिखा था 1. मनुस्मृति की दहन भूमि 2. अस्पृश्यता को खत्म करो 3. ब्रहमणवाद को दफना दो।
इस आंदोलन में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर का साथ ब्रह्मण “गंगाधर नीलकंठ सहस्रबुद्धे” ने दिया था।
अम्बेडकर ने मनु स्मृति क्यों जलाई?
मनुस्मृति हिंदू धर्म का सबसे पुराना ग्रंथ है जिसे मानव ग्रंथ भी कहा जाता है। इसमें 12 अध्याय और 2694 श्लोक हैं यह हिंदू धर्म का कोड ऑफ कंडक्ट भी माना जाता है।
3 फरवरी 1928 को अपने न्यूज़पेपर बहिष्कृत भारत में अंबेडकर जी ने मनु स्मृति को जलाने के कारण भी बताए थे।
उन्होंने कहा था कि मनुस्मृति को पूजने वाले अस्पर्श के लिए कोई कल्याण का काम नही कर सकते और यही जाति व्यवस्था बनाए रखने का एक तरीका है।