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Raja Ram Mohan Roy Biography In Hindi Upsc Pdf Download: राजा राममोहन राय जीवनी निबंध राजनीतिक उदारवादी विचार, सामाजिक और आर्थिक सुधार की सभी जानकारी आपको इस लेख में मिल जायेगी।
राजा राममोहन राय का जन्म 22 मई 1772 को राधानगर, बंगाल में हुआ और इनकी मृत्यु 27 सितंबर 1833, ब्रिस्टल, यूनाइटेड किंगडम में हुई। साल 1809 से साल 1814 तक राजा राममोहन राय ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए भी काम किया। इनके माता पिता ने भी बाद में इनको घर से बाहर निकाल दिया।
“क्या आपको पता है वैसे तो राजा राममोहन राय ने बहुविवाह का विरोध किया लेकिन उन्होंने स्वयं 3 विवाह किए थे। “
विचार / रोचक तथ्य
Contents
राजा राममोहन राय का जन्म 22 मई 1772 को राधानगर बंगाल में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ उनके पिता जी का नाम रमाकांत और माता का नाम तरिणीदेवी था। इनके तीन विवाह हुए जिनमे से दूसरी पत्नी से इन्हे 2 बच्चो की प्राप्ति हुई।
नाम | राजा राममोहन राय |
जन्म की तारीख और स्थान | 22 मई 1772, राधानगर, बंगाल |
मृत्यु की जगह और तारीख | 27 सितंबर 1833, ब्रिस्टल, यूनाइटेड किंगडम |
माता पिता का नाम | रमाकांत(पिता), माता का नाम(माता) |
पत्नी का नाम | उमा देवी (तीसरी पत्नी) |
स्थापना | ब्रह्म समाज, आत्मीय सभा |
उपनाम | नए युग का अग्रदूत, भारतीय पुनर्जागरण का पिता, प्रभात का तारा ,बंगाल में नव-जागरण युग के पितामह |
पेशा | लेखक, समाज सुधारक, अंग्रेजो और मुगल बादशाह के लिए राजकीय सेवा |
जाती/ धर्म | ब्रह्मण / हिंदू |
आने वाली भाषाएं | अंग्रेजी, फारसी, संस्कृत, अरबी, लेटिन,ग्रीक भाषाओं के जानकर |
बेटे | 1880 मे राधाप्रसाद 1882 में रामप्रसाद |
अखबार | संवाद कौमुदी, मिरातुल पत्र |
राजा राममोहन राय की शिक्षा के बारे में अनेक मत प्रचलित है जिनमे से एक मत कहता है की उन्होंने अपने गांव से प्रारंभिक शिक्षा ली और संस्कृत, बंगाली और फारसी भाषा सीखी। कहा जाता है की उन्होंने पटना के एक मदरसे से फारसी और अरबी का अध्ययन किया। बनारस से उन्होंने वेदों और उपनिषदों का ज्ञान लिया।
राजा राममोहन राय मूर्ति पूजा के घोर विरोधी थे उनके मन में कई बार साधु बनने का विचार आया लेकिन उन्होंने अपने आप को शांत कर लिया क्योंकि उनका मां ये नही चाहती थी। मूर्ति पूजा के विरोध के कारण उन्हें परिवार से निकाला गया और देश निकाला भी दिया गया।
हिंदू धर्म में फैली कुरूतियों से निपटने के लिए 20 अगस्त, 1828 को राजा राममोहन राय ने ब्रह्म समाज की स्थापना की थी। इसकी स्थापना से ही भारत में पहली बार सामाजिक धार्मिक सुधार आन्दोलन की शुरुआत हुई। इसके जरिए राजा राममोहन राय ने सती प्रथा जैसे कुरुति को पहचाना और उनकी विरोध किया।
सती प्रथा भारतीय समाज की एक बहुत बड़ी प्रथा थी जिसमें पति के मर जाने के बाद पत्नी को भी उसके साथ चिता पर बिठा दिया जाता था इसका राजा राममोहन राय ने घोर विरोध किया और 1829 में ब्रिटिश सरकार ने इसके विरोध में एक कानून बनाया जिसका श्रेय राजा राममोहन राय को दिया जाता है।
राजा राममोहन राय सभी धर्मों की मौलिक सत्यता पर विश्वास करते थे मुस्लिम उन्हें मुसलमान मानते थे और वही हिंदू भाई उन्हें हिंदू धर्म का मानते थे। ईसाई भी इसमें पीछे नहीं थे। यहां तक की अंग्रेजी पत्र में लिखा मिला की राजा राममोहन राय को गवर्नर जनरल बना देना चाहिए क्योंकि वो न हिंदू है ना ईसाई न मुस्लिम।
हिंदू और मुस्लिम दोनो धर्मो में प्रचलित बाल विवाह जिसमे बच्चो का जल्दी ही काम उम्र में विवाह कर दिया जाता है इसका विरोध उस समय राजा राममोहन ने किया। वही पर्दा प्रथा जो महिलाओं को पर्दे के पीछे रखा जाता था उसका भी इन्होंने विरोध कर दिया।
साल 1825 में राजा राममोहन राय ने वेदांत कॉलेज की स्थापना की जिसमे वेदों के साथ भौतिक विज्ञान और पश्चिमी संस्कृति (समाज) के बारे में पढ़ाया जाता था।
इन्होंने 1817 में हिंदू कॉलेज की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह उस समय का आधुनिक कॉलेज था।
राजा राममोहन राय ने सामाजिक सुधारों के साथ-साथ आर्थिक क्षेत्र में भी सुधार किए जिन्हे आप निम्नलिखित पढ़ सकते है।
राजा राममोहन राय ने बंगाल में चल रही किसानों के ऊपर चल रही दमनकारी नीतियों का विरोध किया। और कर को हटा देने और करमुक्त भूमि की मांग भी अंग्रेजो के सामने रखी।
साथ ही ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारिक अधिकारो को भारत से समाप्त करने पर भी जोर दिया। विदेशों से आ रही वस्तुओ पर सीमा कर कम कर दिया जाना चाहिए ये उनका मानना था।
राजा राममोहन राय ने सामाजिक आर्थिक के साथ-साथ राजनीतिक विचार भी दिए जिनमें आप निम्नलिखित पढ़ सकते हैं।
राजा राममोहन राय ने इंग्लैंड जैसे पश्चिमी देशों का अध्ययन किया और उन्होंने पाया कि वहां चल रही संवैधानिक सरकार नागरिकों को जो अधिकार दे रही है वह भारत में भी दिए जाएं। सभी की समानता पर भी राय ने जोर दिया।
न्यायिक व्यवस्था में सुधार के लिए उन्होंने 1827 में आए ज्यूरी एक का विरोध किया था। इसके अनुसार ईसाई तो हिंदू और मुस्लिम के फैसले कर सकता था लेकिन हिंदू और मुस्लिम ईसाइयों के फैसले नही कर सकते थे जिससे भेदभाव उत्पन्न होता था।
1833 ई. में कॉमन सभा की प्रवर समिति के समक्ष इन चीजों की सिफारिश की थी।
तुहफ़त-उल-मुवाहिदीन (1804) | मुंडक उपनिषद (1819) | द प्रिसेप्टस ऑफ जीसस- द गाइड टू पीस एंड हैप्पीनेस (1820) |
वेदांत गाथा (1815) | हिंदू धर्म की रक्षा (1820) | ब्राह्मापोसना (1828) |
वेदांत सार (1816) | बंगाली व्याकरण (1826) | द यूनिवर्सल रिलीजन (1829) |
केनोपनिषद (1816) | दी युनिवर्सल रिलिजन (1829) | |
ईशोपनिषद (1816) | ब्रहामसंगीत (1829) | |
कठोपनिषद (1817) | गौड़ीय व्याकरण (1833) | भारतीय दर्शन का इतिहास (1829) |
ब्रह्ममैनिकल मैग्ज़ीन | मिरात-उल-अखबार |
संवाद कौमुदी | बंगदूत |
जब अंग्रेजों ने भारत को अपना उपनिवेश बना लिया तो कुछ भी चीज प्रकाशित करवाने से पहले अंग्रेजी हुकूमत की अनुमति लेनी पड़ती थी जिसका राजा राममोहन राय ने पुरजोर विरोध किया और कई अखबारों का प्रकाशन किया। राजा राममोहन राय अभिव्यक्ति की आजादी का खुला समर्थन करते थे और अंग्रेज कई लोगो की आवाज प्रकाशित होने से पहले ही दबाना चाहते थे।
8 अप्रैल 1831 को राजा राममोहन राय ईस्ट इंडिया कंपनी की शिकायत करने के लिए इंग्लैंड गए और बाद में वो पेरिस गए लेकिन एक दिन 27 सितम्बर 1833 यूनाइटेड किंगडम में मेनिंजाइटिस (दिमागी बुखार) से उनकी मृत्यु हो गई और बाद में ब्रिटेन के ब्रिस्टल नगर के आरनोस वेल कब्रिस्तान में राजा राममोहन राय की समाधि बनाई गई।
मेरे अनुसार राजा राममोहन राय भारत के समाजसेवी थे जिन पर मुगल शासकों और अंग्रेजों का प्रभाव था उन्होंने अनेक धर्म होते हुए सिर्फ हिंदू धर्म में सुधार किया और वो मुगल शासक अकबर 2 के लिए काम करते थे। लेकिन सती प्रथा जैसी कुरूति पर संपूर्ण देश को राजा राममोहन राय का धन्यवाद करना चाहिए। वो सभी धर्मो को समान मानते थे इसके कारण सभी लोग उनसे प्यार करते है।
राजा राममोहन राय की जयंती हर वर्ष 22 मई को उनके जन्म दिवस पर मनाई जाती है। इस वर्ष भी इनकी जयंती बड़े हर्षो उल्लास के साथ मनाई जाएगी।
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