रजिया रेखाचित्र – रामवृक्ष बेनीपुरी पूरा पाठ और प्रश्न उत्तर PDF Download

रजिया सारांश | Rajiya Rekhachitara Summary

रजिया रेखाचित्र में लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी एक मनिहारिन रजिया का उल्लेख करता है। जो अपने मां के साथ चूड़ियां बेचती है और वह इतनी सुंदर है की लेखक की नजर उससे हट ही नहीं रही धीरे धीरे लेखक और उसकी आंखे मिलने लगती है और फिर समय के साथ लेखक आगे पढ़ाई के लिए शहर चली जाते हैं और उनका कभी कभी यहां आना होता है। अब रजिया से मिलना और दुर्लभ हो गया है लेकिन इस बार जब वे गांव आए तो रजिया की पोती उन्हे बुलाने आती है रजिया बीमार है वो शायद उनकी आखिरी मुलाकात है।

रजिया रेखाचित्र के आधार पर रजिया का चरित्र चित्रण और उसके व्यक्तित्व की विशेषताओं का वर्णन कीजिए?

  • बाल सुलभ उत्सुकता से पूरित सुंदर लड़की: लेखक स्कूल से आकर उस दिन अपने घर झूला झूल रहा था। जब रजिया उनके घर अपनी मां के साथ चूड़ियों का बाजार लेकर बैठी थी और वह अपनी मां के पास से खड़ी होकर धीरे-धीरे मेरे झूले के सामने आकर खड़ी हो गई। वह इतनी सुंदर थी की लेखक की नजर उससे हट ही नहीं पा रही थी।
  • चूड़ियां पहनाने की कला में निपुण: धीरे-धीरे रजिया बड़ी हो गई और वह अपनी मां के साथ चूड़ियां बेचने की कला में और चूड़ियां पहनाने की कला में निपुण हो गई उसके हाथ इतने मुलायम थे कि नई चूड़ियां तो रजिया के हाथ से पहनेंगे। रजिया जब तक चूड़ियां पहन आती तब तक उसकी मां नई नई खरीददार्नियों को फंसा कर लाती।
  • बातूनी और आकर्षक व्यक्तित्व: जब भी लेखक रजिया से मिलता तो वह उनसे अटपटे सवाल करती और उनसे उत्तर की लालसा भी नहीं रखती लेकर उनको देखकर वशीभूत हो जाते। लेकिन जब वह जवान हुई तो उसके स्वभाव में फर्क आया और वह कम बात करने लगी उसके गालों पर लालिमा छा गई। रजिया जब चूड़ियां पहनाती तो ना जाने कितने नौजवान उसको देखने आते और तो और उसका पति भी दूर से खड़ा खड़ा उसे देखता रहता था।
  • समय की पारखी और जिज्ञासु: रजिया स्वभाव से बहुत जिज्ञासु थी वह बार-बार लेखक से मिलती रहती जब लेखक गांव गया तो एक बच्ची के माध्यम से उनके डेरे के बारे में पूछती है और सुबह पति के साथ उनके डेरे पर पहुंच जाती है। और सब सुनाओ के चक्कर में लिखो गांव आया तो वह अपनी पोती को भेज कर जिज्ञासा के भाव से उन्हें बुला लेती है। जब भी बाजार में कोई नई फैशन की चूड़ियां चलती रजिया उनको खरीद लाती क्योंकि वह जानती है कि अब एक लाख की चूड़ियां कोई खरीदने वाला नहीं अब तो फैशन का जमाना है।
  • अपने चूड़ियों के पेशे में निपुण: रजिया की मां भी एक सफल चुड़िहारीन इनकी वह भी अपनी मां की तरह चुड़िहारीन बन गई। वह नई नई फैशन की चूड़ियां लाकर नई नई बहू को अपनी और आकर्षित करती और उनके पति देवों से भी पैसे निकलवाने में भी वह निपुण हो गई।

कुछ गद्यांश जिनसे आप इस पाठ को आसानी से याद कर सकते है।

मेरे गाँव में लड़कियों की कमी नहीं, किन्तु न उनकी यह वेश-भूषा, न यह रंग-रूप? मेरे गाँव की लड़कियाँ कानों में बालियाँ कहाँ डालतीं और भर-बाँह की कमीन भी उन्हें कभी नहीं पहने देखा और, गोरे चेहरे तो मिले हैं, किन्तु इसकी आँखों में जो एक अजीब किस्म का नीलापन दीखता, वह कहाँ? और समूचे चेहरे की काट भी कुछ निराली जरूर-तभी तो मैं उसे एकटक घूरने लगा।
मैं पढ़ते-पढ़ते बढ़ता गया। बढ़ने पर पढ़ने के लिए शहरों में जाना पड़ा। छुट्टियों में जब-तब आता। इधर रजिया पढ़ तो नहीं सकी, हाँ, बढ़ने में मुझसे पीछे नहीं रही। कुछ दिनों तक अपनी माँ के पीछे-पीछे घूमती फिरी। अभी उसके सिर पर चूड़ियों की खँचिया तो नहीं पड़ी, किन्तु खरीदारिनों के हाथों चूड़ियाँ पिन्हाने की कला वह जान गयी थी। उसके हाथ मुलायम थे, बहुत मुलायम, नयी बहुओं की यही राय थी। वे इसी के हाथ से चूड़ियाँ पहनना पसन्द करतीं। उसकी माँ इससे प्रसन्न ही हुई-जब तब रजिया चूड़ियाँ पिन्हाती, वह नयी-नयी खरीदारिनें फँसाती।
हाँ, रजिया अपने पेशे में भी निपुण होती जाती थी। चूड़िहारिन के पेशे के लिए सिर्फ यही नहीं चाहिए कि उसके पास रंग-बिरंग की चूड़ियाँ हों-सस्ती, टिकाऊ, टटके से टटके फैशन की। बल्कि यह पेशा चूड़ियों के साथ चूड़िहारिनों के बनाव-शृंगार, रूप-रंग, नाजोअदा भी खोजता है। जो चूड़ी पहनने वालियों को ही नहीं, उनको भी मोह सके, जिनकी जेब से चूड़ियों के लिए पैसे निकलते हैं, सफल चूड़िहारिन वह! यह रजिया की माँ भी किसी जमाने में क्या कुछ कम रही होगी-खंडहर कहता है, इमारत शानदार थी।
ज्यों-ज्यों शहर में रहना बढ़ता गया, रजिया से भेंट भी दुर्लभ होती गयी। और एक दिन वह भी आया, जब बहुत दिनों पर उसे अपने गाँव में देखा, पाया उसके पीछे एक नौजवान चूड़ियों की खाँची सिर पर लिये है। मुझे देखते ही वह सहमी, सिकुड़ी और मैंने मान लिया, यह उसका पति है। किन्तु तो भी अनजान सा पूछ ही दिया- “इस मजदूरे को कहाँ से उठा लायी है रे?” “इसी से पूछिए, साथ लग गया, तो क्या करूँ।” नवजवान मुस्कराया, रजिया विहँसी, बोली ‘यही मेरी खाविन्द है मालिक।
मैं भौचक्का, कुछ सूझ नहीं रहा, कुछ समझ में नहीं आ रहा। लोग मुस्करा रहे हैं। नेताजी, आज आपकी कलई खुल कर रही है। नहीं। यह सपना है कि कानों में सुनायी पड़ा, एक कह रहा है-कैसी शोख लड़की! और दूसरा बोलता है ठीक अपनी दादी जैसी। और तीसरे ने मेरे होश की दवा दी-यह रजिया की पोती है बाबू! बेचारी बीमार पड़ी है। आपकी चर्चा अक्सर किया करती है। बड़ी तारीफ करती है! फर्सत हो तो जरा देख लीजिए, न जाने बेचारी जीती है या
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