दीपावली (Diwali) एक हिंदू त्योहार है जिसे संपूर्ण भारत में कार्तिक मास की अमावस्या को बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। यह त्योहार सनातन धर्म का सबसे बड़ा त्यौहार है जो श्री राम के वनवास से वापस आने की खुशी में मनाया जाता है। हिंदुओ के साथ जैन, सिख और बौद्ध भी इस त्योहार को मनाते है। इस साल दीवाली 24 अक्टूबर 2022 को सोमवार के दिन है।
इस बार दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या यानी 24 अक्टूबर 2022 को मनाई जाएगी जिसमें लक्ष्मी जी पूजन का शुभ मुहूर्त शाम 8:00 बजे से 10:00 बजे तक होगा।
हिंदू ग्रंथ रामायण के अनुसार जब श्री राम रावण को मार कर अपने वनवास से कार्तिक मास की अमावस्या के दिन वापस आए थे तो उनके आने की खुशी में पूरे अयोध्या में दीप जलाए गए थे। और संपूर्ण भारतवर्ष अपने आप को श्री राम का वंशज मानता है तो सभी लोग इस त्योहार को मनाते है।
इसके अलावा और भी कारण है जिनके कारण हिंदू दिवाली मनाते है।
जैन धर्म में भी कार्तिक मास की अमावस्या यानी दीपावली का बहुत महत्व है इस दिन जैन धर्म के संस्थापक महावीर जी ने निर्वाण प्राप्त किया। उन्होंने इसी दिन अपने राजसी जीवन का त्याग एक तपस्वी बनने के लिए कर दिया था और मात्र 43 वर्ष की उम्र में ज्ञान प्राप्त कर जैन धर्म का विस्तार करने निकल पड़े।
सिख धर्म में कार्तिक मास की अमावस्या यानी दीपावली का बहुत महत्व है वे इस दिन को बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाते है।
जब जहांगीर ने सिखों के छठे गुरु गुरु हरगोबिंद साहिब को ग्वालियर के किले में कैद कर लिया जब उनके साथ उस किले में 52 हिंदू राजा भी कैद थे ।
लेकिन जब से जहांगीर नहीं सिखों के छठे गुरु गुरु हरगोबिंद साहिब को गिरफ्तार किया तब से वह बीमार रहने लगा तब उन्होंने एक पीर को बुलाया जिसने उन्हें बताया कि उन्हें हरगोबिंद साहिब को रिहा करना होगा तभी वह ठीक हो सकते हैं। लेकिन हरगोबिंद साहिब में अकेले रिहा होने से मना कर दिया और उन 52 हिंदू राजाओं को भी अपने साथ ले जाने के लिए कहा लेकिन जहांगीर ने कहा कि उसी राजा को रिहा किया जाएगा जो आपका कोई कपड़ा पकड़ी होगा उसके जवाब में हरगोबिंद साहिब ने 52 कलियों का एक कुत्ता से लाय और हर एक राजा ने एक कली पकड़ी।
जिसके बाद सभी राजा रिहा हो गए और उस किले जो गुरुद्वारा है वो आज भी दाता बंदी छोड़ के नाम से जाना जाता है और सिख धर्म के अनुयायी आज भी उस दिन को मनाते है और सिख धर्म सनातन धर्म का ही एक हिस्सा भी है।
भारत में और विदेश में रहने वाले सभी धर्मों के लोग दिवाली आने से 10 से 15 दिन पहले ही अपने घरों की साफ-सफाई शुरू कर देते हैं और अपने घरों की लीपापोती करते हैं।
सभी लोग अपने अपने घरों पर मिठाईयां बनाते हैं और अपने पड़ोसियों को बांटते हैं और मेहमानों को भी बांटते हैं जिनमें भारत की सबसे प्रसिद्ध मिठाई सोनपापड़ी है। सभी लोग अपनी गिले-शिकवे मिटाकर एक हो जाते हैं और मेहमानों के साथ दावत पर जाकर दीपावली मनाते हैं।
धन त्रयोदशी जिससे दीपावली महोत्सव की शुरुआत होती है इस दिन सभी भारतीय मृत्यु के देवता यमराज, धन के देवता कुबेर और आयुर्वेदाचार्य धन्वंतरि की पूजा करते है। कहा जाता है की तेरस के दिन ही समुंद्र मंथन में धन्वंतरि और उनके साथ हीरे जवाहरात निकले थे जिसके कारण इस दिन भारतीय घरों में कुछ न कुछ बर्तन या आभूषण खरीदने की परंपरा है।
नरक चतुर्दशी के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध कर 16000 महिलाओं को उस की कैद से आजाद करवाया था कहा जाता है कि इस दिन सूर्योदय से पूर्व उबटन से स्नान करने पर संपूर्ण पाप धुल जाते हैं।
तीसरा दिन होता है मुख्य दीपावली का जिसका सभी को इंतजार होता है इस दिन लोग आतिशबाजी कर के दीपक जला कर माता लक्ष्मी जी की पूजा करते हैं।
इस दिन भाई बहन का त्यौहार होता है बहन अपने भाई को मिठाई खिलाकर उसको तिलक लगाती है हिंदू धर्म में हर त्यौहार के पीछे भाई दूज का त्यौहार अवश्य आता है जिससे भाई और बहन में हमेशा एकता बनी रहे।
दीपावली के दिन दीपक को का विशेष महत्व है इस दिन आपको दो तालियों में दीपक रखने हैं 13 दीपक जलाकर या 26 दीपक जलाकर आप लक्ष्मी जी का पोस्टर लाएं या दीवार पर लक्ष्मी जी और गणेश जी बनाए और उनकी पूजा अर्चना करें। आप खील बताशे और चावल चूरमा और बर्फी इत्यादि से भोग लगाएं। व्यापारी दीपावली के दिन पहले दुकान पर पूजा करें बाद में घर पर पूजन करें।