द्रविड़ नाडु (Dravida Nadu) एक विचार है जो साल 1938 में ई वे रामासामि पेरियार ने “तमीलो के लिए तमिलनाडु” नारे से शुरू हुआ। उन्होंने पूरे भारत में हिंदी की अनिवार्य शिक्षा का विरोध किया और अलग प्रदेश को मांग करने लगे।
द्रविड़ नाडु शुरुआत में एक ब्रह्मण विरोधी आंदोलन था लेकिन धीरे धीरे इसने उत्तर विरोधी और फिर अलगाववाद को बढ़ावा मिलने के बाद एक संप्रभु राज्य की मांग शुरू कर दी।
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द्रविड़ नाडु का आंदोलन उत्तर भारत के खालिस्तान आंदोलन से थोड़ा हटकर है हालांकि दोनों ही अलग राष्ट्र की मांग करते है लेकिन इनमे जो खास अंतर है उसे हम नीचे विस्तार से जानेंगे?
द्रविड़ नाडु क्या है? इसकी मांग कब उठी क्या है इसकी पृष्ठभूमि?
द्रविड़ नाडु की मांग में उनका झंडा, नक्शा और राजधानी क्या है?
सरकारी नौकरी जैसे यूपीएससी की तैयारी कर रहे और इतिहास आदि के छात्रों के लिए इस लेख में आपको पूरा एनालिसिस मिलेगा एक्सप्लेनेशन के साथ?
ईवी रामासामी ‘पेरियार’ ने सबसे पहले तमिल भाषा और लोगो को पहचान और संस्कृति को बनाए रखने के लिए आत्म सम्मान आंदोलन की शुरुआत की। उन्होंने एक द्रविड़ राष्ट्र का सपना सोचा जिसमे तमिलो के साथ तेलगु और मलयालम भाषी लोग भी शामिल थे। अपने इस द्रविड़ नाडु के सपने को साकार करने के लिए पेरियार ने एक राजनीतिक दल की स्थापना की जिसका नाम था जस्टिस पार्टी जिसकी स्थापना 17 सितंबर 1879 में की गई और बाद में 1944 में इसका नाम बदलकर पेरियार ने ही द्रविड़ कड़गम (DK) रख दिया।
सीएन अन्नादुरई मद्रास के अंतिम और तमिलनाडु के प्रथम मुख्यमंत्री थे इन्होंने पेरियार की पार्टी से हटकर द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) पार्टी की स्थापना की जिसकी विचारधारा पेरियार से थोड़ी अलग थी। इन्होंने एक अलग राष्ट्र की मांग छोड़कर तमिलनाडु को अधिक स्वायत्तता और दक्षिण भारतीय राज्यों को आपसी सहयोग से लेकर चलना सही समझा।
स्वतंत्रता के बाद भी द्रविड़ कषगम (डीके) ने द्रविड़ नाडु की मांग जारी रखें और पेरियार ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया। जिसके बाद अन्नादुरई वैचारिक मतभेदों के कारण पेरियार से अलग हो गए और उनकी DMK में शामिल हो गए।
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जिस द्रविड़ नाडु का सपना पेरियार ने देखा था उसकी राजधानी चन्नई (मद्रास) थी और उसके नक्शे में तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल, कर्नाटक और महाराष्ट्र के कुछ इलाके शामिल थे। इसका कोई झंडा उन्होंने जारी नही किया लेकिन उनकी पार्टी द्रविड़ कड़गम का झंडा था। जिनके फोटो आप नीचे देख सकते है।
1952 में स्वतंत्रता सेनानी पोट्टी श्रीरामुलु की 56 दिनों की भूख हड़ताल के अंत में एक अलग तेलुगु राज्य की मांग के लिए मृत्यु हो गई। और इससे केंद्र सरकार पर दबाव बना और 1953 में न्यायमूर्ति फजल अली, इतिहासकार केएम पणिक्कर और सांसद एचएन कुंजरू के तहत राज्य पुनर्गठन आयोग (एसआरसी) का गठन किया गया।
राज्य पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट भाषाई आधार पर राज्य बनाने के पक्ष में थी। राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग के सुझावों को शामिल किया गया और भाषा के आधार पर तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मैसूर और केरल राज्यों का निर्माण किया। और द्रविड़ नाडु की मांग को काफी कमजोर कर दिया गया।
1962 के भारत और पाकिस्तान युद्ध में डीएमके ने अलग तमिलनाडु की मांग छोड़ दी और देश के साथ मिलकर एकता का परिचय दिया। और 16 संविधान संशोधन 1963 में विधानमंडल या संसद के प्रत्येक सदस्य से भारतीय संघ की एकता और अखंडता को बनाए रखने की प्रतिज्ञा करने की मांग रखी।
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डीएमके सांसद अंदिमुथु राजा ने 3 जुलाई 2022 को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की उपस्थिति में कहा की अगर केंद्र सरकार तमिलनाडु को अधिक स्वायत्तता नही देती है तो डीएमके को मांग पुनर्जीवित करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। हम मुख्यमंत्री अन्नादुरई जी के रास्ते पर चल रहे है हमें पेरियार के रास्ते पर चलने के लिए मजबूर मत करो। लेकिन राजा ने ट्वीट के अंत में लिखा की “राष्ट्रीय अखंडता और लोकतंत्र महत्वपूर्ण हैं।”
नीलगिरी से डीएमके सांसद अंदिमुथु राजा, 3 जुलाई 2022
साल 2018 में DMK के कार्यकारी अध्यक्ष और तमिलनाडु विधानसभा में विपक्ष के नेता थे, ने कहा कि अगर दक्षिणी राज्यों को मिलाकर द्रविड़ नाडु की मांग की गई, तो वह इसका समर्थन करेंगे।
एमके स्टालिन, 2018
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