गुट निरपेक्ष आंदोलन | Non-Aligned Movement In Hindi
गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) का गठन शीत युद्ध के दौरान नए नए आजाद हुए या विकासशील देशों को सोवियत संघ और संयुक्त राज्य से अलग रहकर अपने हितों और महत्वकांक्षाओं को पूर्ति के लिए स्वतंत्र और तथस्थ रहने के लिए किया गया था।
शीत युद्ध में पूरी दुनिया दो खेमों में बंट गई इनका बंटने का आधार था विचारधारा एक तरफ रूस के नेतृत्व में साम्यवादी और दूसरी तरफ अमेरिका के नेतृत्व में पूंजीवादी देश थे लेकिन उस समय ब्रिटेन का पूरी दुनिया के देशों पर कब्जा था और बहुत सारे देश उस समय आजाद हुए थे जिसके कारण उनका इस युद्ध में शामिल होना उनके आर्थिक, राजनीतिक खात्मे की निशानी रहता तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री प. जवाहर लाल नेहरू और नेताओं ने मिलकर किसी भी समूह में शामिल ना होकर एक गुटनिरपेक्ष आंदोलन चलाया। गुट निरपेक्ष आंदोलन में शामिल देशों को उस समय तीसरी दुनिया के देश भी कहा गया।
इसकी पहली बार चर्चा साल 1955 में इंडोनेशिया में हुए एशिया-अफ्रीका बांडुंग सम्मेलन में हुई।
पूरा नाम (Full Form)
गुटनिरपेक्ष आंदोलन (Non-Aligned Movement)
सदस्य देश
120(2019) सदस्य 17 (पर्यवेक्षक)
प्रमुख संस्थापक नेता
यूगोस्लाविया के जोसिप ब्रोज़ टीटो, मिस्र के जमाल अब्देल नासिर, भारत के जवाहरलाल नेहरू, घाना के क्वामे नक्रमा, इंडोनेशिया के सुकर्णो
स्थापना वर्ष
1 सितम्बर 1961
मुख्यालय
जकार्ता, इंडोनेशिया
प्रथम अध्यक्ष
युगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसिप बरोज टीटो
संगठन सदस्य
10 अंतरराष्ट्रीय संगठन
प्रथम चर्चा
1955, बांडुंग सम्मेलन
1979 की हवाना घोषणा में प्रमुख उद्देश्य
साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, नव-उपनिवेशवाद, नस्लवाद का विरोध करना।
राष्ट्रीय स्वतंत्रता, संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और गुटनिरपेक्ष देशों की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन के प्रमुख सिद्धांत
तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू गुटनिरपेक्ष आंदोलन (Non-Aligned Movement) के संस्थापक रहे इसी कारण इसके ज्यादातर सिद्धांत पंचशील सिद्धांतों की तरह मेल खाते हैं।
संयुक्त राष्ट्र के चार्टर और अंतरराष्ट्रीय कानून में निहित सिद्धांतों का सम्मान करना।
सभी राज्यों की संप्रभुता, संप्रभु समानता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना।
संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के अनुसार सभी अंतरराष्ट्रीय संघर्षों का शांतिपूर्ण समाधान करना।
देशों और लोगों की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विविधता का सम्मान करना।
संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के अनुसार व्यक्तिगत या सामूहिक आत्मरक्षा के निहित अधिकार का सम्मान करना।
किसी भी देश के आंतरिक मामलों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दोनों तरीकों से किसी भी तरह का हस्तक्षेप ना करना चाहे वह किसी भी उद्देश्य से हो।
मानव की किसी भी समस्या को बातचीत और सहयोग के माध्यम से हल करना।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन के उद्देश्य
उस समय विश्व की प्रमुख शक्तियां आपस में तो टकराई नही लेकिन उनके खेमे में जो देश थे वो बर्बाद हो गए जिसके कारण इन देशों ने किसी भी महाशक्ति का मोहरा बनने से बेहतर तथस्थता का रुख अपनाया।
साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद के साथ किसी भी महाशक्ति का गुलाम बनने से इन देशों को गुट निरपेक्ष आंदोलन ने बचाया।
अगर ये देश किसी खेमे में शामिल होकर शीत युद्ध में शामिल होते तो अवश्य ही इनकी अर्थव्यवस्था छिन्न भिन्न हो जाती लेकिन गुट निरपेक्ष होने के कारण दोनो महाशक्तियों के इनके मधुर सम्बन्ध बने रहे।
शीत युद्ध के दौर में गुट निरपेक्ष आंदोलन (NAM)
रंगभेद का विरोध :- गुट निरपेक्षता आंदोलन के दूसरे ही शिखर सम्मेलन जो काहिरा में हुआ उसमे दक्षिण अफ्रीकी सरकार को रंगभेद की भेदभावपूर्ण प्रथाओं के खिलाफ चेतावनी दी गई।
शस्त्र रखने का विरोध :- गुटनिरपेक्ष आंदोलन की भावना सह-अस्तित्व की रही है जिसके कारण ये हथियारों की होड़ के विरोधी रहे है। संयुक्त राष्ट्र की महासभा में भारत ने मसौदा प्रस्ताव पेश किया की परमाणु हथियार का उपयोग सयुक्त राष्ट्र के चार्टर के खिलाफ होगा और मानवता के लिए एक अपराध होगा इसलिए इनको बैन किया जाना चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council) में सुधार का पक्षधर :- गुटनिरपेक्ष आंदोलन शुरुआत से ही UNSC में US और USSR के वर्चस्व के खिलाफ था। और तीसरी दुनिया के देशों की हिस्सेदारी भी यूएनएससी में चाहता है।
भारत और गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM)
भारतीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू गुटनिरपेक्ष आंदोलन के संस्थापकों में से एक थे और भारत सबसे बड़ा संस्थापक देश था लेकिन भारत के ussr की ओर झुकाव को देखकर बाकी सभी देश भी कोई सोवियत संघ तो कोई सयुक्त राष्ट्र अमेरिका की ओर चले गए।
लेकिन सोवियत संघ के विघटन के बाद भारत का झुकाव अमेरिका की ओर हुआ और भारत की गंभीरता पर शक करना जायज था जिसके कारण गुट निरपेक्ष आंदोलन कमजोर पड़ता गया।
भारत के प्रधान मंत्री ने 2016 में वेनेजुएला में आयोजित 17वें गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) शिखर सम्मेलन को छोड़ दिया।
भारत एक परमाणु शक्ति देश है और एक परमाणु शक्ति संपन्न देश दूसरे देशों के हथियार विकशित करने से कैसे रोक सकता है।
गुट निरपेक्ष आंदोलन (NAM) की प्रासंगिकता
प्रासंगिकता का अर्थ हिंदी में आप समझ सकते है जरूरत की उस समय गुट निरपेक्ष आंदोलन की क्या जरूरत थी जो इसे चलाया गया और इसके क्या लाभ हुए।
विश्व शांति में भूमिका :- नाम ने शीत युद्ध और उसके बाद भी विश्व शांति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
प्रादेशिक अखंडता और संप्रभुता :- NAM का प्रमुख उद्देश्य सभी विकासशील देशों की अखंडता के साथ उनकी संप्रभुता बनी रहे।
तीसरी दुनिया के देशों का रक्षक :- विश्व के छोटे-छोटे विकासशील देश जिनका अनेक देशों ने उपनवेश के माध्यम से शोषण किया गुटनिरपेक्ष आंदोलन उनके लिए एक रक्षक के रूप में आया और उन्हें युद्ध से दूर रखने के साथ-साथ आर्थिक रूप से समृद्ध होने का मौका भी मिला।
समान विश्व व्यवस्था पर जोर :- संपूर्ण विश्व को अपने राजनीतिक और वैचारिक मतभेद दूर कर एक साथ मिलकर कार्य करने चाहिए।
विकासशील देशों का हित :- विकासशील देश यदि किसी भी गठबंधन में शामिल होते हैं तो उन्हें दूसरे गठबंधन का विरोधी बनना पड़ता है जिसके कारण उनकी राजनीतिक और आर्थिक दशा खराब हो सकती थी लेकिन गुटनिरपेक्ष आंदोलन में शामिल होकर उनको अपना हित रहा।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन का पहला शिखर सम्मेलन कब और कहां हुआ?
Non-Aligned Movement (NAM) का प्रथम शिखर सम्मेलन सितंबर 1961 में बेलग्रेड, यूगोस्लाविया में हुआ था।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के वर्तमान में कितने सदस्य देश है?
अप्रैल, 2018 तक गुटनिरपेक्षता में 120 देश शामिल थे जिनमे 53 अफ्रीका के देश और 39 देश एशिया से सदस्य है। लैटिन अमेरिका और कैरिबियन के। 26 देश और यूरोप के बेलारूस और अजरबैजान गुटनिरपेक्ष संगठन के सदस्य हैं। वर्तमान में 17 देश गुटनिरपेक्ष आंदोलन में पर्यवेक्षक के रूप में जुड़े हुए हैं।
गुट निरपेक्ष आंदोलन के वर्तमान अध्यक्ष कौन है?
गुट निरपेक्ष आंदोलन के वर्तमान अध्यक्ष निकोलस मादुरो है।