दिन ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि संवत् 1663 (अंग्रेजी कैलेंडर:- 30 मई 1606) को मुगल बादशाह जहांगीर के आदेश के अनुसार उन्हें लाहौर में गर्मी में गर्म तवे पर बैठा दिया इसके बाद उनके ऊपर गर्म रेत और गर्म तेल डाला गया और जब यातनाएं ज्यादा होने लगी तो गुरु देव मूर्छित हो गए तो उनके शव को रावी नदी में बहा दिया गया जी हां हम आज उन्ही गुरु अर्जुन देव जी की बात करने जा रहे है।
“तेरा कीया मीठा लागै॥ हरि नामु पदार्थ नानक मांगै॥”
गुरु अर्जुन देव जी के आखिरी शब्द
गुरु अर्जन देव (Guru Arjan Dev) सिख धर्म की गुरु परंपरा के पांचवे गुरु और शहीद होने वाले गुरुओं में पहले गुरु थे। इनके पिताजी गुरु राम दास इनसे पहले सिख धर्म के चौथे गुरू थे और इनके नाना गुरु अमर दास जी सिख धर्म के तीसरे गुरु थे। और गुरु अर्जुन देव के बाद उनके पुत्र गुरु हरगोबिंद सिंह सिख धर्म के छठे गुरु बने थे।
- गुरु अर्जुन देव ने ही सिख धर्म का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल हरमंदिर साहिब का निर्माण करवाया।
- गुरु अर्जन देव ने ही सिख धर्म के ग्रंथो का अध्ययन किया और बाद में गुरु ग्रंथ साहिब का संपादन किया था जिसमे उनकी सहायता भाई गुरदास ने की, वर्तमान में सभी सिख गुरु ग्रंथ साहिब को ही अपना गुरु मानते है।
- गुरु अर्जन देव गुरु होने के साथ एक महान कवि थे उन्होंने आदि ग्रंथ (गुरु ग्रंथ साहिब), सुखमणि साहिब प्रमुख हैं।
- गुरु देव देवनागरी, गुरुमुखी, संस्कृत और गणित विषयों के अच्छे ज्ञाता थे।
आज हम इस पोस्ट में गुरु अर्जन देव (Guru Arjan Dev) के बारे में संपूर्ण जानकारी उनके जन्म से लेकर शहीद होने तक एक एक कहानियां आपको बताने जा रहे है आप पूरी पोस्ट जरूर पढ़ें।
गुरु अर्जुन देव जीवन परिचय | Guru Arjan Dev Biography In Hindi
गुरु अर्जन देव (Guru Arjan Dev) का जन्म 15 अप्रैल 1563 में गोइंदवाल, अमृतसर में सिख धर्म के चौथे गुरु रामदासजी और माता भानीजी के घर हुआ। गुरु अर्जुन देव जी को सर्वधर्म समभाव के साथ अपने आत्म बलिदान के लिए जाना जाता है।
गुरु देव का नाम (Guru Dev Ka Name) | गुरु अर्जुन देव (Guru Arjun Dev) |
धर्म (Relegion) | सिख धर्म (Sikhism) |
जन्म तिथि और स्थान (Date Of Birth & Place) | 15 अप्रैल 1563 गोइंदवाल , मुगल साम्राज्य (वर्तमान में तरनतारन जिला, पंजाब, भारत) |
बलिदान दिवस और स्थान (Date Of Death & Place) | 30 मई 1606, लाहौर, मुगल साम्राज्य (वर्तमान में पाकिस्तान) |
माता पिता का नाम (Parent’s Name) | गुरु राम दास (पिताजी), बीवी भानी (माताजी) |
पत्नी का नाम (Wife’s Name) | माता गंगा |
बच्चो का नाम | गुरु हरगोबिंद साहिब |
प्रसिद्धि | 1. स्वर्ण मंदिर का निर्माण 2. तरणतारन साहिब शहर की स्थापना करवाई 3. सिख धर्म के पांचवे गुरु |
नाना | गुरु अमर दास |
संपादन | गुरु ग्रंथ साहिब |
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बाला और कृष्णा पंडित को अर्जुन देव की सीख
- एक समय बाला और कृष्णा पंडित सुंदरकथा का पाठ करके सभी लोगो को खुश किया करते थे उनकी कथा को सुनकर लोगो के मन को शांति मिला करती थी।
- एक दिन बाला और कृष्णा पंडित दोनो गुरु अर्जुन देव के दरबार में आए प्रार्थना करते हुए कहा की हमारे मन में शांति नहीं है आप कोई उपाय बताएं जिससे हमें शांति मिल सकें।
- गुरु अर्जुन देव जी ने कहा की अगर आप शांति चाहते हो तो जो आप लोगों को कहते हो उसे अपने जीवन में करो अपनी कथनी को जीवन में उतारो। और परमात्मा को हमेशा अपने साथ जानकर उनको हमेशा याद रखा करो।
- आप दोनों धन इकट्ठा करने के लालच से कथा करते हो इससे आपके मन को कभी शांति नहीं मिलेगी और उल्टा आपका लालच इससे बढ़ता चला जायेगा।
गुरुबानियो को इकट्ठा कर गुरु ग्रंथ साहिब बनाया
- जब गुरु अर्जुन देव गद्दी पर बैठे तो उनके मन में एक विचार आया कि सभी गुरुओं की वाणीयों को जोड़कर एक ग्रंथ बनाया जाए तो उन्होंने इसपर काम शुरू किया जिसमे सबसे पहली अड़चन उनके मामा मोहनजी आए जिनके पास नानकबानी की मूल प्रति थी।
- गुरु अर्जन देव ने पहले भाई गुरदास और उनके बाद भाई बुढ्ढा को उनके पास नानकबानी की प्रति लेने भेजा लेकिन दोनो ही खाली हाथ वापस लौटे।
- तब जाकर गुरु अर्जुन देव स्वयं प्रति लेने अपने मामा मोहनजी के पास चल दिए लेकिन द्वार पर ही एक सेवक ने उन्हे रोक दिया जिसके बाद गुरु देव ने द्वार से ही गा गाकर मामा से नानकबाणी देने की विनती करने लगे।
- मोहनजी ने उन्हे डांट फटकार कर भगाने की सोची लेकिन गुरु अर्जन देव जी की जिद, धैर्य और विनम्रता देखकर मोहनजी ने उनको नानकबानी देने का निर्णय लिया।
- उसके बाद गुरु अर्जुन देव जी ने सभी गुरुओं की बानी और अन्य धर्मों के संतो के भजनों को एकत्र कर गुरु ग्रंथ साहिब का संपादन किया और उसे दरबार साहिब में स्थापित करवाया।
गुरु अर्जन देव की शहीदी
- दिल्ली के बादशाह अकबर अपने पुत्र जहांगीर की नशे पत्ते और बाकी आदतों से परेशान थे इसीलिए उन्होंने अपने गद्दी का वारिस अपने पौत्र खुसरो को बनाने का सोचा लेकिन जब उनकी मृत्यु हो रही थी तब उन्होंने ताज अपने बेटे जहांगीर के हाथ में दे दिया।
- जहांगीर दिल्ली की सत्ता का बादशाह बना और उसने खुसरो को महल के अंदर ही नजर बंद कर दिया लेकिन खुसरो एक दिन महल से भाग गया और उसका साथ दिया राजपूत सरदारों ने जब उसके भागने की खबर जहांगीर को लगी तो जहांगीर ने अपनी सेना लाहौर भेजी।
- लाहौर जाने से पहले खुसरो गुरु अर्जन देव जी से मिला और गुरु अर्जन देव ने उन्हें आशीर्वाद दिया था। लेकिन लाहौर से काबुल जाते समय जहांगीर और खुसरो की सेना में युद्ध हुआ और खुसरो की हार हुई और उसे बंदी बनाकर महल में लाया गया।
- जिन भी सरदारों ने खुसरो का साथ दिया उन्हें चौराहे पर भाले के ऊपर डाल दिया गया और यह दृश्य खुसरो को दिखाया गया साथ में उसकी आंखे फोड़कर काल कोठरी में डाल दिया गया।
- फिर जहांगीर ने तलास शुरू की खुसरो का साथ देने वालो की जिनमे सिख गुरु अर्जन देव का नाम सामने आया और जहांगीर अर्जन देव जी से वैसे ही परेशान था क्योंकि उस समय अपवाह थी की उनके द्वारा संपादित आदि ग्रंथ में मुस्लिम धर्म के विरोध में बाते लिखी हुई है।
- तब गुरु अर्जन देव को बंदी बनाकर दिल्ली लाया गया वहां इनपर जुर्माना लगाकर मुस्लिमों के विरोध में लिखी बातों को आदि ग्रंथ से हटाने को मना किया तो गुरु देव ने हटाने से मना कर दिया।
- कहा जाता है की इसके बाद गुरु अर्जुन देव को लाहौर जेल में भेज दिया गया वहां उनके साथ अनेक प्रताड़नाएं हुई उन्हे गर्म तवे पर बैठा कर उनके सिर के ऊपर गर्म रेत डाली गई और जब वे मूर्छित हो गए तो उनके शव को रावी नदी में बहा दिया गया। दूसरी किवदंती ये भी है की उनको नदी में डुबोकर ही मार दिया गया।
गुरु अर्जन देव FAQ
गुरु अर्जन देव का प्रकाश पर्व 15 अप्रैल को मनाया जाता है क्योंकि इनका जन्म 15 अप्रैल 1563 को हुआ था।
गुरु अर्जन देव का विवाह माता गंगा से मात्र 16 वर्ष की उम्र में हुआ। जो जालंधर जिले के मौ साहिब गांव में कृष्णचंद की बेटी थी।
सिख धर्म के पहले शहीद श्री गुरु अर्जुन देव जी को माना जाता है।
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