जैसलमेर दुर्ग जिसे सोनार का किला या सोनारगढ़ (स्वर्णगीरी)
सोनार का किले में चार प्रवेश द्वार हैं जिनका नाम अक्षय पोल, सूरजपोल, गणेश पोल और हवा पोल है।
जब सूर्य की रोशनी त्रिकुट गढ़ या जैसलमेर दुर्ग पर गिरती है तो ये सोने से बना हुआ दिखाई देता है इसी कारण इसका नाम सोनार का किला पड़ा।
गोडहरा दुर्ग – नाम पड़ने के पीछे की भी एक कहानी है ऐसा माना जाता है की जिस ऊंचाई पर है किला बना हुआ है उस जगह पहले गोडहरा पहाड़ी थी इसके कारण ही इसका नाम गोडहरा दुर्ग पड़ा।
कमरकोट या पाड़ा – जैसलमेर के किले(Jaisalmer Fort) के चारो तरफ दोहरा परकोटा बना हुआ है जिसे कमरकोट या पाड़ा कहते है।
महारावल वैरिसाल ने साल 1437 ई. में जैसलमेर दुर्ग में लक्ष्मीनारायण मंदिर का निर्माण करवाया और इसमें जो मूर्तियां लगाई गई वे मेड़ता से लाई गई थी।
महारावल अखेसिंह ने जब शासन किया तब उन्होंने किले में शीश महल का निर्माण करवाया और मूलराज द्वितीय ने अपने शासनकाल में रंग महल और मोती महल का निर्माण कार्य करवाया।
राजस्थान कला संस्कृति और अपने लोकनृत्यों के साथ-साथ पूरे विश्व में जाना जाता है अपने किलो के लिए और आज हम उन्हीं किलो में से एक सोनार के किले के बारे में जानने वाले है।
किले के अन्य नाम | जैसलमेर दुर्ग, सोनार का किला, सोनारगढ़ दुर्ग, स्वर्णगिरी दुर्ग, सोनागढ़, त्रिकुट गढ़, गोडहरा दुर्ग |
श्रेणी | धान्वन दुर्ग |
निर्माण करवाने वाला | राव जैसल भाटी |
निर्माण शुरू वर्ष | 1115 ईस्वी |
निर्माण पूर्ण करवाया | शालिवाहन द्वितीय (राव जैसल के पुत्र) |
आकृति | त्रिभजाकार – रेगिस्तान में ये एक बड़े जहाज की तरह दिखाई देता है। |
बुर्जो की संख्या | कुल 99 बुर्ज |
विलास | गज विलास, जवाहर विलास |
जैन मंदिर | पार्श्वनाथ सम्भवनाथ व ऋषभदेव जी |
पेयजल | जैसल कुएं से |
21 जून 2013 को जैसलमेर दुर्ग यानी सोनार के किले को यूनेस्को विश्व विरासत स्थल सूची में शामिल कर लिया गया।
गढ़ दिल्ली, गढ़ आगरो, अध गढ़ बीकानेर।
भलो चिणायो भाटियां सिरै तो जैसलमेर।।
घोड़ा कीजे का काठ का,पग कीजे पाषाण।
अख्तर कीजे लोहे का,तब पहुँचे जैसाण।।
अबुल फजल
इसका अर्थ है की अगर आपको जैसलमेर का किला देखना है तो आपको लकड़ी का घोड़ा लाना होगा और पत्थर के पैर कर लेने चाहिए और शरीर आपको लोहे का कर लेना चाहिए जब आपको जैसलमेर का सोनारगढ़ या स्वर्णगिरी दुर्ग देखने का मौका मिल सकता है।
इस किले पर सत्यजीत रे ने सोनार नामक फिल्म बनाई थी। लेकिन जैसलमेर दुर्ग को प्रसिद्धि इसमें राव लूणकरण के शासनकाल 1550 ई. में अर्धशाका हुआ उससे मिली जिसे इतिहास में ढाई शाके के नाम से जाना जाता है।
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